Wednesday, January 27, 2010

आखरी उडान

स्वरण सूरज के यौवन की
किरणों का प्रकाश लिए
झिल - मिल , झिल - मिल तारों का
यह सुसज्जित आकाश लिए
दूर क्षितिज पर कोई खड़ा
खींच रहा मुझे अपनी ओर .........




श्वेत वर्ण है , नील नयन हैं
इन्द्र धनुष सा पूर्ण गगन है
मुख मंडल पर ज्योति संगम
चपल , चतुर , चंचल चितवन है


कर कमलों में कंगन डाले
अधरों पर मुस्कान लिए
न कोई बंधन, न कोई डोर .........


दूर क्षितिज पर कोई खड़ा
खींच रहा मुझे अपनी ओर .........




कभी रुकूं , कभी चलता जाऊं
कदम कदम मैं बढता जाऊं
हल्का हो गया , हूँ मैं इतना
पर नहीं , पर उड़ता जाऊं


हवा नहीं तुम मुझको रोको
क्यों न अब तुम जाने दो तो
देखूं तो कैसे होगी
उस पार की पहली भोर ...........

दूर क्षितिज पर कोई खड़ा
खींच रहा मुझे अपनी ओर .........




मोह माया में डूबी थी काया
उस पर तेरे प्यार की छाया
रिश्ते, नाते, प्यार, मोहब्बत,
इस मोड़ के पीछे , मैं छोड़ के आया


हर पल चल मैं उधर रहा हूँ
बस जाने को अब मचल रहा हूँ
कोई झगडा , न कोई शोर .........


दूर क्षितिज पर कोई खड़ा
खींच रहा मुझे अपनी ओर .........




























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