करती हूँ मैं , आप सब से गिला
हम बच्चों को आप से , क्या है मिला ?
वायु को छोड़ा , न पेड़ो को छोड़ा
दो और दो को , पाँच आप ने जोड़ा
शेरों का करते , हैं आप शिकार
पानी को करते , हैं आप खराब
खून हमारा जब एक है
राम - रहीम में , क्या भेद है
घर में मेरी , जब लड़ाई हुई
ममा से जम कर , पिटाई हुई
झगडा लडाई , करते हैं आप
खून खराबा , करते हैं आप
ममा कहाँ है , आप की जनाब ?
ममा कहाँ है , आप की जनाब ?
नन्ही हूँ मैं , और नन्ही है जान
अच्छा बुरा , नहीं सकती पहचान
आपने पहचान , मेरी किससे करी
इससे तो में , अनजान थी भली
बच्चों का भी तो , अधिकार है
बीत गया जो कल , आपका था
क्यों किया कल मेरा , लाचार है
कुछ तो करो , आप मिलके आज
अरे ! कुछ तो करो , आप मिलके के आज
हम भी कहैं , आप जिंदाबाद
हम भी कहैं , आप जिंदाबाद !
Saturday, February 6, 2010
Wednesday, January 27, 2010
आखरी उडान
स्वरण सूरज के यौवन की
किरणों का प्रकाश लिए
झिल - मिल , झिल - मिल तारों का
यह सुसज्जित आकाश लिए
दूर क्षितिज पर कोई खड़ा
खींच रहा मुझे अपनी ओर .........
श्वेत वर्ण है , नील नयन हैं
इन्द्र धनुष सा पूर्ण गगन है
मुख मंडल पर ज्योति संगम
चपल , चतुर , चंचल चितवन है
कर कमलों में कंगन डाले
अधरों पर मुस्कान लिए
न कोई बंधन, न कोई डोर .........
दूर क्षितिज पर कोई खड़ा
खींच रहा मुझे अपनी ओर .........
कभी रुकूं , कभी चलता जाऊं
कदम कदम मैं बढता जाऊं
हल्का हो गया , हूँ मैं इतना
पर नहीं , पर उड़ता जाऊं
हवा नहीं तुम मुझको रोको
क्यों न अब तुम जाने दो तो
देखूं तो कैसे होगी
उस पार की पहली भोर ...........
दूर क्षितिज पर कोई खड़ा
खींच रहा मुझे अपनी ओर .........
मोह माया में डूबी थी काया
उस पर तेरे प्यार की छाया
रिश्ते, नाते, प्यार, मोहब्बत,
इस मोड़ के पीछे , मैं छोड़ के आया
हर पल चल मैं उधर रहा हूँ
बस जाने को अब मचल रहा हूँ
न कोई झगडा , न कोई शोर .........
दूर क्षितिज पर कोई खड़ा
खींच रहा मुझे अपनी ओर .........
किरणों का प्रकाश लिए
झिल - मिल , झिल - मिल तारों का
यह सुसज्जित आकाश लिए
दूर क्षितिज पर कोई खड़ा
खींच रहा मुझे अपनी ओर .........
श्वेत वर्ण है , नील नयन हैं
इन्द्र धनुष सा पूर्ण गगन है
मुख मंडल पर ज्योति संगम
चपल , चतुर , चंचल चितवन है
कर कमलों में कंगन डाले
अधरों पर मुस्कान लिए
न कोई बंधन, न कोई डोर .........
दूर क्षितिज पर कोई खड़ा
खींच रहा मुझे अपनी ओर .........
कभी रुकूं , कभी चलता जाऊं
कदम कदम मैं बढता जाऊं
हल्का हो गया , हूँ मैं इतना
पर नहीं , पर उड़ता जाऊं
हवा नहीं तुम मुझको रोको
क्यों न अब तुम जाने दो तो
देखूं तो कैसे होगी
उस पार की पहली भोर ...........
दूर क्षितिज पर कोई खड़ा
खींच रहा मुझे अपनी ओर .........
मोह माया में डूबी थी काया
उस पर तेरे प्यार की छाया
रिश्ते, नाते, प्यार, मोहब्बत,
इस मोड़ के पीछे , मैं छोड़ के आया
हर पल चल मैं उधर रहा हूँ
बस जाने को अब मचल रहा हूँ
न कोई झगडा , न कोई शोर .........
दूर क्षितिज पर कोई खड़ा
खींच रहा मुझे अपनी ओर .........
Sunday, January 17, 2010
पिक्की
पिक्की देखो बड़ी हो गयी !
खटिया सब की खड़ी हो गयी !
पिक्की देखो बड़ी हो गयी !
फूल , फूल, फूलों की
झरी हो गयी
पिक्की देखो बड़ी हो गयी !
ऐसे दिन भी आतें हैं
तारें वो गिनवाते हैं
सुंदर, सुहाने सलोने सपने
आँखों में छा जाते हैं
चोदां साल की खरी हो गयी
पिक्की देखो बड़ी हो गयी !
अच्छा सा कोई ढूंढो वर
निर्भर , मम्मी उसकी मुझ पर
आयी वो , बोलीं यूं
जल्दी कर , जल्दी कर,
मानूगी तेरी बात में हर
छोटा हो या मोटा हो
दिल का चाहे खोटा हो
बिन पैंदी का लोटा हो
होना चाहिए पर वो नर
समझे मिस्टर
" येस सिस्टर "
बोलना न फिर गड़बड़ी हो गयी
पिक्की रात को आती है
थोडा सा घबराती है
थोडा सा शर्माती है
पैर मेरे दबाती है
अच्छा सा ढूंढूं दूल्हा
शायद ऐसा वो चाहती है
मामू की तड़ी हो गयी
पिक्की देखो बड़ी हो गयी !
इत्ती लिखी पड़ी हो गयी
पिक्की देखो बड़ी हो गयी !
खटिया सब की खड़ी हो गयी !
पिक्की देखो बड़ी हो गयी !
फूल , फूल, फूलों की
झरी हो गयी
पिक्की देखो बड़ी हो गयी !
ऐसे दिन भी आतें हैं
तारें वो गिनवाते हैं
सुंदर, सुहाने सलोने सपने
आँखों में छा जाते हैं
चोदां साल की खरी हो गयी
पिक्की देखो बड़ी हो गयी !
अच्छा सा कोई ढूंढो वर
निर्भर , मम्मी उसकी मुझ पर
आयी वो , बोलीं यूं
जल्दी कर , जल्दी कर,
मानूगी तेरी बात में हर
छोटा हो या मोटा हो
दिल का चाहे खोटा हो
बिन पैंदी का लोटा हो
होना चाहिए पर वो नर
समझे मिस्टर
" येस सिस्टर "
बोलना न फिर गड़बड़ी हो गयी
पिक्की रात को आती है
थोडा सा घबराती है
थोडा सा शर्माती है
पैर मेरे दबाती है
अच्छा सा ढूंढूं दूल्हा
शायद ऐसा वो चाहती है
मामू की तड़ी हो गयी
पिक्की देखो बड़ी हो गयी !
इत्ती लिखी पड़ी हो गयी
पिक्की देखो बड़ी हो गयी !
Friday, January 15, 2010
आहट ओस की !
सुबह होने से बस कुछ पहले
कमल लगे जब जैसे खिलने चान्दिनी में भीगी सी तुम ओस की गिरती आहट सुनने लौट के फिर आ जाती जोरात का जीवन सो चुका है
तुम आयोगी , क्यों लगा मुझे यूं रुकी रुकी जब चली हवा सी
चाँद गया है झील में ढलने
कोयल भी है वाली उठने चान्दिनी में भीगी सी तुम ओस की गिरती आहट सुनने लौट के फिर आ जाती जो जहाँ जहाँ तेरे पैर पड़े थे
वह दबी घास इतराती है
जिस फूल को तुमने छुआ थावह दबी घास इतराती है
उस शाख में कम्पन अभी बाकी है
साँस रोके, यहाँ पेड़ हैं जितने
खड़े हुए बरसों से कितने
चान्दिनी में भीगी सी तुम ओस की गिरती आहट सुनने लौट के फिर आ जाती जोखड़े हुए बरसों से कितने
जिस जगह पे तुम कभी बैठी थी
वहां दिया आस का जलता है
पत्थर , पोधे , पेड़, हवा सब
कुछ भी नहीं बदलता है
वहां दिया आस का जलता है
पत्थर , पोधे , पेड़, हवा सब
कुछ भी नहीं बदलता है
कितनी कोशिश कर ली सबने
प्यास नहीं ये वाली बुझने
चान्दिनी में भीगी सी तुम ओस की गिरती आहट सुनने लौट के फिर आ जाती जो प्यास नहीं ये वाली बुझने
यह चाँद , रात और नीरवता
सब , कुछ पल में गुम हो जायगा
कई हजारों सालों में
एक पन्ना और जुड़ जायगा
कुछ नमी अभी बची है इनमे
छोड़ी थी आँखों में जो तुमने
चान्दिनी में भीगी सी तुम ओस की गिरती आहट सुनने लौट के फिर आ जाती जो
Wednesday, January 13, 2010
शक्ति
हार गये ?
तो क्या !हार कोई
अंतिम चरण नहीं होती!
अंतिम चरण नहीं होती!
प्रयास करो,
एक बार और , एक बार फिर -ज़िन्दगी यहाँ
ख़तम नहीं होती !
उस हार के भीतर बीज था
जीत का !नहीं दिखा ?
रुक के सोच लो ,
एक बार और , एक बार फिर -इस सरलता से जीत
दमन नहीं होती !
प्रयास करो,
ज़िन्दगी यहाँ ख़तम नहीं होती !
दूर तक कोई सिला,
तुमने चाहा पर नहीं मिला ,मुड़ के देख लो,
आखरी बची साँस
भी कम नहीं होती
प्रयास करो ,
एक बार और , एक बार फिर -
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